Friday, March 20, 2009

काश...

काश बहेते हुए जख्मको मरहम लगा सकते,
बिते हुए दिन वापस ला सकते,
आपके बिन बुलाए ही चले आसकते,
और तपती हुइ रेत पर सुकुन की बुंदे गीरा सकते...

1 comment:

  1. mat karo wo koshish ,
    jo preshan karey//

    kya khoob likha hein aapney
    har shakhs yeh hi kooshish kartey hein;;;

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