Thursday, July 9, 2009

बेरहम !!!

कॅसे समज़ाये पागल दिल को,
रातकी बारिशमें सपने देखे भिगने के,
पता न था सुबहकी ज़ालिम धूपको,
चाहते थे कागज़की कश्ती से खेलने को,
बिखेर दिये घने काले बादल को,
कॅसी बेरहमीसे छोड दिया तडपाने को
.... स्वाति

2 comments:

  1. dil to dil hein
    uska kya sochna
    karm karoo
    sab theek hein

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  2. इस सुन्दर रचना के लिये बहुत बहुत धन्यवाद...

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