Friday, June 12, 2009

जब उभर आती हॅ याद दिलमें,

एक कसक सी उठती हॅ सीने मे,

युं न आऑ तन्हा ये दिल में,

डर हॅ कहीं खुद को खो न दुं ये जालिम जमाने में

5 comments:

  1. वह वह! बदीया! दिल के गेहराही से लिखी है और पड ने वाले के दिल को अन्धर से छू जाता है!

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  2. wah bahut badiya hein ji

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  3. dear swatiji ,
    aap ki rachana e padhi muje bahu pasand aayee aur ha muje aapki saral lekin ehri samaj bhi samaj aayee.

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  4. सुन्दर रचना ........
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  5. आपका ब्लॉग देखा ...
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